महाराष्ट्र की राजनीति में ‘बाटेंगे तो काटेंगे’ नारे पर गरमा-गरम बहस
महाराष्ट्र की राजनीति में ‘बाटेंगे तो काटेंगे’ नारे को लेकर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के नेताओं के बीच तीखी बयानबाजी हो रही है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने एनसीपी नेता अजित पवार के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे जनता की भावनाओं के विपरीत बताया।
क्या है ‘बाटेंगे तो काटेंगे’ का विवाद?
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक चुनावी सभा में ‘बाटेंगे तो काटेंगे’ नारे का इस्तेमाल किया। इस नारे का उद्देश्य समाज में विभाजन और उसकी नकारात्मकता पर प्रकाश डालना था। हालांकि, एनसीपी नेता अजित पवार ने इसे लेकर सवाल उठाए और इसे अनावश्यक बताया।
देवेंद्र फडणवीस ने अजित पवार की प्रतिक्रिया पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा कि “जो लोग दशकों तक धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदुत्व का विरोध करते आए हैं, उन्हें इस नारे का महत्व समझने में समय लगेगा।”
फडणवीस का बयान
देवेंद्र फडणवीस ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि “देश के इतिहास में जब-जब समाज विभाजित हुआ है, तब-तब उसने बड़ी कीमत चुकाई है। जब देश जाति, धर्म, या राज्यों के नाम पर बंटा है, तब हमने गुलामी का सामना किया है। इस संदर्भ में, योगी आदित्यनाथ का नारा सही संदेश देता है कि हमें एकजुट रहना चाहिए।”
उन्होंने आगे कहा, “यदि कोई इस नारे का विरोध करता है, तो इसका मतलब है कि वह या तो जनता की भावना को नहीं समझ रहा या वह कुछ और कहना चाहता है।”
अजित पवार की प्रतिक्रिया
अजित पवार ने ‘बाटेंगे तो काटेंगे’ नारे को अनुचित बताते हुए कहा था कि चुनाव प्रचार में ऐसे बयानों से बचा जाना चाहिए। उनका मानना है कि इस तरह के बयान सामाजिक सौहार्द को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
महायुति और महाविकास अघाड़ी के बीच खींचतान
महाराष्ट्र में बीजेपी, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना और अजित पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी का महायुति गठबंधन महाविकास अघाड़ी (एमवीए) के खिलाफ है। एमवीए में कांग्रेस, उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली शिवसेना, और शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी शामिल हैं।
20 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले यह विवाद चुनावी बहस का बड़ा मुद्दा बन गया है।
निष्कर्ष
‘बाटेंगे तो काटेंगे’ नारे को लेकर छिड़ी बहस महाराष्ट्र की राजनीति में नया मोड़ ले रही है। देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार के बयान इस बात की पुष्टि करते हैं कि चुनावों के दौरान विचारधाराओं की टकराहट चरम पर है। यह देखना दिलचस्प होगा कि इस नारे का प्रभाव चुनावी नतीजों पर कितना पड़ता है।